नई पुस्तकें >> मैं मन हूँ मैं मन हूँदीप त्रिवेदी
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मैं मन हूँ
• क्या आप जानते है कि मैं कौन हूँ ?
• क्या आपको पता हैं कि बुद्धि और मन दोनों अलग-अलग हैं ?
• क्या आपको पता हैं कि एक बार आपने मुझपर यानि अपने मन पर मास्टरी पा ली तो आप; कब, कौन, क्यों और क्या कर रहा है उसका सटीक पता लगा सकते हैं ?
• अगर आपको यह पता चल गया होता तो फिर क्या आपको और सभी को सुख और सफलता पाने के लिए इतना संघर्ष करना पड़ता ?
‘सुख और सफलता हर मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है, लेकिन वो इसे पाने से चूक जाता है’, ये कहना है विख्यात लेखक और वक्ता श्री दीप त्रिवेदीजी का जिन्होंने ‘मैं मन हूँ’ नामक किताब लिखी है। मन के बाबत कम ज्ञान उपलब्ध होने के कारण वो अक्सर ऐसी गलतियां कर बैठता है जिससे उसके जीवन की डोर रुक जाती है। तो इसका इलाज क्या है ? सिर्फ एक; ‘अपने मन को समझें’ ये कहना है श्री दीप त्रिवेदीजी का।
इस किताब में श्री दीप त्रिवेदीजी मन के रहस्यों को उजागर करने के साथ-साथ जीवन के हर पहलुओं से जुड़े प्रश्नों के उत्तर भी देते हैं। त्रिवेदीजी का कहना है कि एक बार आपने मन पर मास्टरी पा ली तो फिर आप दूसरों के मनों को भी जान और समझ सकेंगे कि वे जो कुछ भी कर या सोच रहे हैं उनके वैसा करने के पीछे का कारण क्या है। ऐसी कला आपको आज की दुनिया में बाकियों से आगे रखेगी क्योंकि यही चीज सफलता पाने में मुख्य भूमिका निभाती है। इस किताब को और भी मजेदार बनाने हेतु श्री दीप त्रिवेदीजी ने इसमें 23 छोटी कहानियों व दृष्टांतों के जरिए मन के अद्भुत ज्ञान को प्रस्तुत किया है जो हर उम्र के लोगों को पसंद आएगी। और-तो-और इसमें चॉइल्ड सायकोलोजी के बारे में भी गहराई से बताया गया है। इसीलिए यह पुस्तक परवरिश करने की कला भी सिखाती है।
सुख और सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है। क्या आप इसे नहीं पाना चाहते ?
• क्या आपको पता हैं कि बुद्धि और मन दोनों अलग-अलग हैं ?
• क्या आपको पता हैं कि एक बार आपने मुझपर यानि अपने मन पर मास्टरी पा ली तो आप; कब, कौन, क्यों और क्या कर रहा है उसका सटीक पता लगा सकते हैं ?
• अगर आपको यह पता चल गया होता तो फिर क्या आपको और सभी को सुख और सफलता पाने के लिए इतना संघर्ष करना पड़ता ?
‘सुख और सफलता हर मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है, लेकिन वो इसे पाने से चूक जाता है’, ये कहना है विख्यात लेखक और वक्ता श्री दीप त्रिवेदीजी का जिन्होंने ‘मैं मन हूँ’ नामक किताब लिखी है। मन के बाबत कम ज्ञान उपलब्ध होने के कारण वो अक्सर ऐसी गलतियां कर बैठता है जिससे उसके जीवन की डोर रुक जाती है। तो इसका इलाज क्या है ? सिर्फ एक; ‘अपने मन को समझें’ ये कहना है श्री दीप त्रिवेदीजी का।
इस किताब में श्री दीप त्रिवेदीजी मन के रहस्यों को उजागर करने के साथ-साथ जीवन के हर पहलुओं से जुड़े प्रश्नों के उत्तर भी देते हैं। त्रिवेदीजी का कहना है कि एक बार आपने मन पर मास्टरी पा ली तो फिर आप दूसरों के मनों को भी जान और समझ सकेंगे कि वे जो कुछ भी कर या सोच रहे हैं उनके वैसा करने के पीछे का कारण क्या है। ऐसी कला आपको आज की दुनिया में बाकियों से आगे रखेगी क्योंकि यही चीज सफलता पाने में मुख्य भूमिका निभाती है। इस किताब को और भी मजेदार बनाने हेतु श्री दीप त्रिवेदीजी ने इसमें 23 छोटी कहानियों व दृष्टांतों के जरिए मन के अद्भुत ज्ञान को प्रस्तुत किया है जो हर उम्र के लोगों को पसंद आएगी। और-तो-और इसमें चॉइल्ड सायकोलोजी के बारे में भी गहराई से बताया गया है। इसीलिए यह पुस्तक परवरिश करने की कला भी सिखाती है।
सुख और सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है। क्या आप इसे नहीं पाना चाहते ?
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